फादर्स डे पर बाबूजी को प्रेषित ...........
सख्त नारियल से दिखते
पर नरम गरी हो बाबूजी ,
तेरी कड़वी बातों का सच
जैसे मिश्री बाबूजी .
ममता के आँचल से बाहर
एक संसार हो बाबूजी ,
तेरी डाटो को अब समझा
एक कुम्हार हो बाबूजी .
जब भी ऊँचा चढ़ना होता
तेरा कन्धा बाबूजी,
माँ की लोरी जब सो जाती
तेरा कन्धा बाबूजी ,
सबको कपडे नए दिलाते
हर उत्सव में बाबूजी ,
वही पुरानी कोट पहन कर
रोब दिखाते बाबूजी .
दिनभर घर से बाहर रहकर
घर को जीते बाबूजी ,
भागमभाग ,जोड़तोड़ कर
घर को सीते बाबूजी .
नाना ,दादू ,ताऊ,बेटा
सबमे बंटते बाबूजी ,
हमको अच्छी नींद सुलाते
करवट लेते बाबूजी ,
घर की चक्की में चलते
कभी न थकते बाबूजी
दिन भर एक टट्टू के जैसे
खटते रहते बाबूजी ,
अपने कष्टों को सह-सह कर
हंसते रहते बाबूजी ,
रोने का कब वक्त मिला ?
कैसे रोते बाबूजी ??????
१९ जून २०११
दिल्ली
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2 टिप्पणियां:
हार्दिक अभिवादन -बहुत ही सुन्दर जज्बात
कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
माफ़ी चाहता हूँ
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