रोज हंगामें में संसद,
मामला खेतों का है ।
पी गये है सारा दरिया,
अब नजर रेतों पर है ।
यह ठगों की मंडली,
केवल तमाशा कर रही ।
कोई ललितों का सिपाही,
कोई कोलगेटों से है ।
खेत में होरी बिचारा ,
सोच कर हैरान है ।
मुफलिसी चिर सहचरी,
क्या इतना मज़ा खेतों में है ?
मुल्क की मेरे सियासत,
क्या अच्छे दिन ले आई है ?
बाप से ज्यादा अकल,
मखमली बेटो में है ।
दिल्ली
21 जुलाई 2015