रविवार, 19 जून 2011

बाबूजी




 फादर्स डे पर बाबूजी को प्रेषित ...........


सख्त नारियल से दिखते 
पर नरम गरी हो बाबूजी ,
तेरी कड़वी बातों का सच
जैसे मिश्री बाबूजी . 

ममता के आँचल  से बाहर 
एक संसार हो बाबूजी ,
तेरी डाटो को अब समझा 
एक कुम्हार हो बाबूजी .



जब भी ऊँचा चढ़ना होता 
तेरा कन्धा बाबूजी,
माँ की लोरी जब सो जाती 
तेरा कन्धा बाबूजी ,

सबको कपडे नए दिलाते 
हर उत्सव में  बाबूजी ,
वही पुरानी कोट पहन कर 
रोब दिखाते बाबूजी . 

दिनभर घर से बाहर रहकर 
घर को जीते बाबूजी ,
भागमभाग ,जोड़तोड़  कर 
घर को सीते बाबूजी .

नाना ,दादू ,ताऊ,बेटा 
सबमे बंटते बाबूजी ,
हमको अच्छी नींद सुलाते 
करवट लेते बाबूजी ,

घर की चक्की में चलते 
कभी न थकते बाबूजी 
दिन भर एक टट्टू के जैसे 
खटते रहते बाबूजी ,

अपने कष्टों को सह-सह  कर 
हंसते रहते बाबूजी ,
रोने का  कब वक्त मिला ?
कैसे रोते बाबूजी ??????


१९ जून २०११
दिल्ली 
****

2 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

हार्दिक अभिवादन -बहुत ही सुन्दर जज्बात

संजय भास्‍कर ने कहा…

कई दिनों व्यस्त होने के कारण  ब्लॉग पर नहीं आ सका
माफ़ी चाहता हूँ