मंगलवार, 21 जुलाई 2015

मामला खेतों का है ...



रोज हंगामें में संसद,
 मामला खेतों का है ।
 पी गये है सारा दरिया,
 अब नजर रेतों पर है ।


 यह ठगों की मंडली,
 केवल तमाशा कर रही ।
 कोई ललितों का सिपाही,
 कोई कोलगेटों से है ।


 खेत में होरी बिचारा ,
 सोच कर हैरान है ।
 मुफलिसी चिर सहचरी,
क्या इतना मज़ा खेतों में है ?


 मुल्क की मेरे सियासत,
 क्या अच्छे दिन ले आई है ?
 बाप से ज्यादा अकल,
 मखमली बेटो में है ।


 दिल्ली
21 जुलाई 2015

2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

संदीप ने कहा…

धन्यवाद मदन मोहन सक्सेना जी !